जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है प्राकृतिक गैस और विमान ईंधन
गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) से जुड़े फैसले लेने वाला शीर्ष निकाय जीएसटी परिषद इस सप्ताह विमान ईंधन (एटीएफ) को जीएसटी के दायरे में लाने का विचार कर सकता है, लेकिन टैक्स स्लैब इसमें बाधा खड़ा करने का काम कर रही है। मामले से जुड़े लोगों ने इसकी जानकारी दी।
एक जुलाई 2017 को जब जीएसटी लागू किया गया था तो 5 उत्पादों-कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, पेट्रोल, डीजल और विमान ईंधन को इसके दायरे से बाहर रखा गया था। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्यों को होने पर नुकसान के चलते इन्हें तुरंत जीएसटी के दायरे में लाने में देरी हो रही है। हालांकि, प्रक्रिया शुरू करने के लिए प्राकृतिक गैस और एटीएफ को उपयुक्त माना जा रहा है।
जीएसटी परिषद की बैठक 21 जुलाई को होनी है और इसमें प्राकृतिक गैस और एटीएफ को नए अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के दायरे में लाने का प्रस्ताव चर्चा के लिए लाया जा सकता है। जीएसटी काउंसिल में वित्त मंत्री के अलावा अन्य सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के वित्त मंत्री या प्रतिनिधि शामिल हैं।
हालांकि, इन दोनों उत्पादों को जीएसटी कर की दरों 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत में रखना मुश्किल साबित हो रहा है। वर्तमान में केंद्र एटीएफ पर 14 प्रतिशत का उत्पाद शुल्क लगाता है। इसके ऊपर से राज्य 30 प्रतिशत तक सेल्स टैक्स या वैट लगाते हैं। ओडिशा और छत्तीसगढ़ में विमान ईंधन पर 5 प्रतिशत वैट हैं जबकि तमिलनाडु में 29 प्रतिशत, महाराष्ट्र और दिल्ली में 25 प्रतिशत और कर्नाटक में 28 प्रतिशत वैट है।
टैक्स को तटस्थ रखने के लिए केंद्र और राज्य द्वारा लगाए गए शुल्क को मिलाकर जीएसटी के रूप में एक मूल कर लगाया गया है। एटीएफ के मामले में बड़े हवाई अड्डों वाले राज्यों में कर की दर 39-44 प्रतिशत होगी। सूत्रों ने कहा कि इसका अर्थ यह है कि यदि एटीएफ पर अधिकतम 28 प्रतिशत का कर लगाया जाता है, तो बड़े पैमाने पर राजस्व का नुकसान होगा।
इससे बचने के लिए राज्यों को एटीएफ की उच्च दर पर कुछ वैट लगाने की अनुमति दी जा सकती है। हालांकि इसके लिए केंद्र और राज्यों को इस पर सहमत होना होगा। उन्होंने कहा कि 28 प्रतिशत जीएसटी दर का मतलब कम वैट वाले राज्यों में एटीएफ की कीमत में वृद्धि होगी। प्राकृतिक गैस के मामले में, उपभोक्ताओं के स्तर में कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
केंद्र सरकार उद्योगों को बेची गयी प्राकृतिक गैस पर कोई उत्पाद शुल्क नहीं लगाती है लेकिन सीएनजी पर 14 प्रतिशत का उत्पाद शुल्क लगता है। वहीं, दूसरी ओर राज्य 20 प्रतिशत तक वैट लगाते हैं। दिल्ली में वैट शून्य है जबकि गुजरात में वैट 12.8 प्रतिशत बिहार में 20 प्रतिशत, कर्नाटक में 14.5 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 13.5 प्रतिशत वैट है। सूत्रों ने कहा यदि प्राकृतिक गैस पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाता है तो राज्यों को नुकसान होगा लेकिन अगर 18 प्रतिशत कर लगाया जाता है तो बिजली और उर्वरक के उत्पादन की लागत में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि सीएनजी के लिए टैक्स निर्धारण (फिटमेंट) एक समस्या हो सकती है।
हालांकि, इन दोनों उत्पादों को जीएसटी कर की दरों 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत में रखना मुश्किल साबित हो रहा है। वर्तमान में केंद्र एटीएफ पर 14 प्रतिशत का उत्पाद शुल्क लगाता है। इसके ऊपर से राज्य 30 प्रतिशत तक सेल्स टैक्स या वैट लगाते हैं। ओडिशा और छत्तीसगढ़ में विमान ईंधन पर 5 प्रतिशत वैट हैं जबकि तमिलनाडु में 29 प्रतिशत, महाराष्ट्र और दिल्ली में 25 प्रतिशत और कर्नाटक में 28 प्रतिशत वैट है।
टैक्स को तटस्थ रखने के लिए केंद्र और राज्य द्वारा लगाए गए शुल्क को मिलाकर जीएसटी के रूप में एक मूल कर लगाया गया है। एटीएफ के मामले में बड़े हवाई अड्डों वाले राज्यों में कर की दर 39-44 प्रतिशत होगी। सूत्रों ने कहा कि इसका अर्थ यह है कि यदि एटीएफ पर अधिकतम 28 प्रतिशत का कर लगाया जाता है, तो बड़े पैमाने पर राजस्व का नुकसान होगा।
इससे बचने के लिए राज्यों को एटीएफ की उच्च दर पर कुछ वैट लगाने की अनुमति दी जा सकती है। हालांकि इसके लिए केंद्र और राज्यों को इस पर सहमत होना होगा। उन्होंने कहा कि 28 प्रतिशत जीएसटी दर का मतलब कम वैट वाले राज्यों में एटीएफ की कीमत में वृद्धि होगी। प्राकृतिक गैस के मामले में, उपभोक्ताओं के स्तर में कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
केंद्र सरकार उद्योगों को बेची गयी प्राकृतिक गैस पर कोई उत्पाद शुल्क नहीं लगाती है लेकिन सीएनजी पर 14 प्रतिशत का उत्पाद शुल्क लगता है। वहीं, दूसरी ओर राज्य 20 प्रतिशत तक वैट लगाते हैं। दिल्ली में वैट शून्य है जबकि गुजरात में वैट 12.8 प्रतिशत बिहार में 20 प्रतिशत, कर्नाटक में 14.5 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 13.5 प्रतिशत वैट है। सूत्रों ने कहा यदि प्राकृतिक गैस पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाता है तो राज्यों को नुकसान होगा लेकिन अगर 18 प्रतिशत कर लगाया जाता है तो बिजली और उर्वरक के उत्पादन की लागत में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि सीएनजी के लिए टैक्स निर्धारण (फिटमेंट) एक समस्या हो सकती है।
Source: Nav Bhart Time
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